Editorial: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की स्वीकारोक्ति से बदलेंगे हालात
- By Habib --
- Friday, 31 Jan, 2025
The situation will change with the confession of Congress MP Rahul Gandhi
The situation will change with the confession of Congress MP Rahul Gandhi: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं सांसद राहुल गांधी की यह स्वीकारोक्ति उचित ही है कि अगर कांग्रेस ने दलितों-पिछड़ों की सहायता करने के साथ उनका भरोसा कायम रखा होता तो आज हालात कुछ और होते। उनका तर्क है कि ऐसा हुआ होता तो भाजपा आज सत्ता में नहीं होती। दरअसल, इसके व्यापक सबूत हैं कि कांग्रेस ने उन सरोकारों को समय के साथ पीछे छोड़ दिया, जिनके लिए वह जानी जाती थी। पार्टी ने एक नहीं अपितु अनेक ऐसी ऐतिहासिक त्रुटियां की हैं, जिनकी बदौलत अनेक राजनीतिक दलों को बढ़त मिली। कांग्रेस क्या इससे इनकार करेगी कि आम आदमी पार्टी का जन्म और उसका विकास कांग्रेस के घटते कद की वजह से हुआ। बेशक, दूसरे राजनीतिक दलों ने भी कांग्रेस की कमियों को अपना हथियार बनाया और खुद को विकसित करते गई।
आज कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं तो समझा जाना चाहिए कि पार्टी अपने खो चुके आधार को वापस लाने के लिए कुछ जत्न करेगी। राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि एकबार कांग्रेस पार्टी का मूल आधार वापस आया तो सत्ताधारी राजनीतिक दल को जाते देर नहीं लगेगी। हालांकि सवाल यही है कि आखिर कांग्रेस यह सब कैसे करेगी, बीते वर्षों में उसके अनेक नेता दिशाहीनता की वजह से पार्टी से दूर जा चुके हैं। वहीं राज्यों में बैठे दलित नेताओं का भी पार्टी सम्मान नहीं रख पा रही। क्या दिल्ली में बैठ कर इस तरह की बातें करने से कांग्रेस का मूल आधार सच में वापस मिल सकता है।
राहुल गांधी का कहना है कि नब्बे के दशक में कांग्रेस ने दलित और पिछड़ों के हितों की अनदेखी करते हुए उनकी उस तरह संभाल नहीं की, जैसे इसे करनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी कहा कि इसकी सच्चाई पार्टी से छिपी नहीं है, लेकिन इस गलती को स्वीकार करना होगा। वास्तव में कांग्रेस को अनेक ऐसी गलतियों को स्वीकार करके उन्हें दुरुस्त करने की जरूरत है। देश की जनता जानती है कि कांग्रेस का अस्तित्व उसके लिए कितना आवश्यक है। आखिर इससे कौन इनकार करेगा कि लोकतंत्र में बहुदलों की मौजूदगी जरूरी है। लेकिन अगर कांग्रेस ने अपने चाल, चरित्र और चेहरे में स्वीकार्यता लाने की कोशिश नहीं की तो इसके लिए जनता को जिम्मेदार क्यों ठहराया जा रहा है।
चुनाव में अगर मतदाता कांग्रेस पर इतना भरोसा नहीं दिखा पाता तो इसके लिए क्या मतदाता जिम्मेदार है। नहीं इसके लिए कांग्रेस खुद जिम्मेदार है। राहुल गांधी की बात को कांग्रेस जन स्वीकार करते हैं, लेकिन क्या यह भी जरूरी नहीं है कि उनकी बात पर अमल भी हो। हरियाणा लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान सभी ने देखा है कि पार्टी ने अपने दलित नेताओं की उपेक्षा की और उन्हें अपमानित भी किया। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की वजह दलित महिला नेता का उपहास और अपमान रहा। पार्टी के विरोधियों ने इसका भरपूर फायदा उठाया लेकिन कांग्रेस ने खुद को बदलने की जरूरत नहीं समझी। सफेद कपड़ों में राजनीति का रंग स्याह होता है और यहां तमाम संवेदनाएं मर जाती हैं। राहुल गांधी आज इस भूल को स्वीकार कर रहे हैं तो यह उन सभी नेताओं को भी स्वीकार करनी चाहिए जोकि पार्टी के कर्णधार होने का दावा करते हैं।
देश में जातीय राजनीति कभी खत्म होने वाली नहीं है। कांग्रेस ने दलित और पिछड़ों के हित की सोची लेकिन यह भी सच है कि पार्टी ने इन वर्गों को अपने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया। कांग्रेस का यह मानना रहा है कि ये वर्ग उसके फिक्स डिपोजिट हैं, जो उससे कहीं नहीं जाने वाले। नेता विपक्ष राहुल गांधी ने संसद में ताल ठोकते हुए कहा था कि कांग्रेस की सरकार आने पर देश में जातिगत जनगणना कराई जाएगी। संसद में उन्होंने उन अधिकारियों की फोटो दिखाते हुए पूछा था कि इनमें कोई भी एससी/एसटी या ओबीसी वर्ग से नहीं है।
दरअसल, कांग्रेस के लिए यह आवश्यक है कि वह रचनात्मक राजनीति को आगे लेकर जाए। नेता विपक्ष राहुल गांधी की अनेक टिप्पणियां पार्टी के लिए व्यवधान खड़े करती है। अगर पार्टी फिर से देश की सत्ता में लौटने की इच्छा रखती है तो उसे यह साबित करना होगा। यह भी जरूरी है कि पार्टी सभी वर्गों को साथ लेकर आगे बढ़े और किसी वर्ग विशेष को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल न करे। वहीं यह भी जरूरी है कि पार्टी में अपने दलित और पिछड़ा वर्ग के नेताओं को उनका यथोचित सम्मान प्रदान करे।
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